सरलभाषा संस्कृतम्

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बुधवार, 27 अप्रैल 2016

लघुसिद्धान्तकौमुदी


आदिरन्त्येन सहेता ४, १।१।७१
अन्त्येनेता सहित आदिर्मध्यगानां स्वस्य च संज्ञा स्यात् यथाणिति अ इ उ वर्णानां संज्ञा। एवमच् हल् अलित्यादयः॥

अर्थ - अन्त्य इत् से युक्त आदिवर्ण, मध्यगत वर्णों की तथा अपनी संज्ञा हो ।जैसे- "अण् "यह अ,इ,उ,वर्णों की संज्ञा है । इसी प्रकार अक्, अच्,हल्, अल् आदि भी जान लेना चाहिये ।
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व्याख्या --आदि।१।१ अन्त्येन ।३।१ सह-इत्यव्ययपदम् । इता ।३।१ स्वस्य ।६।१ ["स्व रुप शब्दस्याशब्दसंज्ञा "से । "स्वम् "यह प्रथमान्त पद आकर विभक्ति-विपरिणाम से षष्ठ्यन्त हो जाता है]
यह सूत्र संज्ञाधिकार के बीच पढ़ा जाने से संज्ञा सूत्र है । यहाँ "अन्त्येनेता सहादि "अर्थात् "अन्त्य इत् से युक्त आदि "यह संज्ञा है । अब संज्ञी का निर्णय करना है कि संज्ञी कौन हो? क्योंकि सूत्र में तो किसी का निर्देश ही नहीं । आदि और अन्त्य अव्यय शब्द हैं । अवयवों से अवयवी लाया जाता है । अतः यहाँ अवयवी ही संज्ञी होगा । उस अवयवी(समुदाय) से आदि और अन्त्य संज्ञा होने के कारण निकल जायेंगे । शेष मध्यगत वर्ण ही संज्ञी ठहरेंगे । पुनः "स्वस्य "पद की अनुवृत्ति आकर भी संज्ञी हो जाएगा । इसप्रकार आदि तथा मध्यगत वर्ण संज्ञी बनेंगे । तो अब इस सूत्र का अर्थ यह हुआ--(अन्त्येन )अन्त्य (इता) इत् से (सह)युक्त (आदि)आदि वर्ण(स्वस्य)अपनी तथा मध्यगत वर्णों की संज्ञा होता है । यहाँ हमने "स्वस्य "पद से आदि का ग्रहण किया है, पर कोई पूछ सकता है कि "स्वस्य "पद से अन्त्य का ग्रहण कर "अन्त्य इत् "से युक्त आदि अन्त्य तथा मध्यगत वर्णों की संज्ञा हो ,ऐसा अर्थ क्यों न लिया जाये? इसका उत्तर यह है कि "स्व "यह सर्वनाम है । सर्वनाम प्रधान का ही निर्देश कराने वाले होते हैं, अप्रधान के नहीं । "अन्त्येनेता सहादि " यहाँ प्रधान आदि है, अन्त्य नहीं । क्योंकि "सहयुक्तेऽप्रधाने "(२।३।१९)से अप्रधान में ही तृतीया होती है, अतः "स्व "सर्वनाम प्रधान आदि का ही ग्रहण करायेगा,अप्रधान का नहीं ।
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"अइउण् " यहाँ अन्त्य इत् =ण् है । आदि "अ "है । अत: अन्त्य इत् से युक्त आदि "अण् "हुआ । यह संज्ञा है । इ,उ,मध्यगत तथा "अ "आदि ये ३ संज्ञी हैं । इसी प्रकार अच्, अक्, हल् आदि भी जानने चाहिये । यहाँ इस शास्त्र में इनके लिये प्रत्याहार शब्द व्यवहृत होते हैं ।
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यहाँ अन्त्य और आदि 'अइउण् "सूत्रों की अपेक्षा से नहीं लेने, किन्तु मन में रखे समुदाय की अपेक्षा लेने से है । यथा- "इउण् ऋलृक् "इस समुदाय का आदि "इ "और अन्त्य "क् " है ।अन्त्य युक्त आदि =इक् संज्ञा होगी ।" रट्ल "यहाँ उपदेशेऽजनुनासिक इत् "(२८)से लकारस्थ अकार इत् है ।समुदाय का आदि "र् " है अन्त्य" अँ "है । अन्त्ययुक्त आदि र् +अँ ="रँ " यह संज्ञा होगी । इस संज्ञा के "र "और "ल "२ ही संज्ञी है ।
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क्रमशः ..................
अगला सूत्र -ऊकालोऽज्झ्रस्वदीर्घप्लुतः। , १।२।२७

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