सरलभाषा संस्कृतम्

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सोमवार, 18 अप्रैल 2016

लघुसिद्धान्तकौमुदीं सूत्र १


नत्वा सरस्वतीं देवीं शुद्धां गुण्यां करोम्यहम्।

पाणिनीय प्रवेशाय लघु सिद्धांत कौमुदीम्।

अथ प्रत्याहार सूत्राणि 

अइउण्। ऋलृक्। एेओड.। एेऔच्। हयवरट्। लण्। ञमङणनम्। झभय्। घढधष्। जबगडदश्। खफछठथचटतव्। कपय्। शषसर्। हल्।

सँज्ञा-सूत्रम्-१ हलन्त्यम् ।१।३।३।।

उपदेशेऽन्त्यं हलित्स्यात्। उपदेश आद्योच्चारणम्। 

सूत्रेष्वदृष्टं पदं सूत्रान्तरादनुवर्तनीयं सर्वत्र॥

अर्थ-उपदेश में विद्यमान अन्त्य हल् इत्संज्ञक हो । धातु आदि के आद्य उच्चारण को उपदेश कहते हैं ।सूत्रों में जो पद न हो (पर वृत्ति में दिखाई दे) वह पद सर्वत्र पिछले (या कहीं कहीं अगले) सूत्रों से ले लेना चाहिए ।

व्याख्या -इस व्याकरण के कर्त्ता महामुनि पाणिनि हैं ।इन्होंने "अष्टाध्यायी "नामक जगत् प्रसिद्ध ग्रन्थ रचा है ।इस ग्रन्थ में ८ अध्याय और प्रत्येक अध्याय में ४-४ पाद हैं । अर्थात् सब मिला के ३२ पाद अष्टाध्यायी में है । हर एक पाद में भिन्न -भिन्न संख्याओं में सूत्र हैं । समग्र अष्टाध्यायी की सूत्र संख्या ३९६५ है । प्राचीन काल में यह सम्पूर्ण अष्टाध्यायी कण्ठस्थ की जाती थी ।

इस ग्रन्थ में अष्टाध्यायी के सूत्र बिखरे हुए हैं । उन सूत्रों के आगे तीन अंक लिखे हैं । इनमें से पहला अष्टाध्यायी के अध्याय का सूचक,दूसरा पाद का सूचक तथा तीसरा सूत्र सूचक समझना चाहिये ।

जैसे -हलन्त्यम् १।३।३।।

यहाँ १ से तात्पर्य प्रथमाध्याय, ३ से तृतीयपाद और अन्तिम ३ से तात्पर्य तीसरे सूत्र से है ।

#१--सबसे पहले सूत्रों का पदच्छेद करना चाहिए जैसे--हलन्त्यम् १।३।३।।

हल् ।अन्त्यम् ।

आदिरन्त्येन सहेता १।१।७०

आदि । अन्त्येन् । सह । इता ।।

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★ कई स्थानों पर पिछले सूत्रों से तथा कहीं कहीं अग्रिम सूत्रों से भी पद ले लिया जाता है ।

जैसे--हलन्त्यम् १।३।३।। यहाँ पिछले "उपदेशेऽजनुनासिक इत् "सूत्र से "उपदेशे "और "इत् " ये २ पद आते हैं । 

२---- पदच्छेद के बाद उन पदों की विभक्तियाँ जाननी चाहिए ।

जैसे--हलन्त्यम् १।३।३।।

उपदेशे ७।१ अन्त्यम् १।१ हल् १।१ इत् १।१

यहाँ पहले अंक से "विभक्ति "और दूसरे से "वचन " समझना चाहिये ।

३----पदच्छेद और विभक्ति जानने के पश्चात् समास जानना चाहिए । समास कहीं होता है, कहीं नहीं होता । यथा "तस्य लोप: " इस सूत्र में कोई समास नहीं । "तुल्यास्यप्रयत्न सवर्णम् " आदि सूत्रों में समास है ।

४----इतना जान लेने के पश्चात् महामुनि पाणिनि के अर्थ करने के नियमों का ध्यान रखकर सूत्र का अर्थ करना चाहिए । पाणिनि के वे नियम प्राय ये है -------

1 षष्ठी स्थानेयोगा १।१।४९

2 तस्मिन्निति निर्दिष्टे पूर्वस्य १।१।६६

3 तस्मादित्युत्तरस्य १।१।६७

4 अलो ऽन्त्यस्य १।१।५२

5 आदेः परस्य १।१।५४

6 इको गुणवृद्धी १।१।३

7 अचश्च। , १।२।२८

8 येनविधिस्तदन्तस्य। , १।१।७१आदि

इन सबको यथास्थान स्पष्ट किया जायेगा ।

° पुनः --हलन्त्यम् १।३।३।।

उपदेशे ७।१ ["उपदेशेऽजनुनासिक इत् "सूत्र से ]

अन्त्यम् १।१

हल् १।१ 

इत् १।१["उपदेशेऽजनुनासिक इत् "सूत्र से ]

अर्थ-उपदेश में विद्यमान अन्त्य हल् इत्संज्ञक होगा । यदि उपदेश में कहीं हमें अन्त्य मिलेगा तो वह इत्संज्ञक होगा । 

उपदेश क्या है??

"उपदेश आद्योच्चारणम् " आद्योच्चारण उपदेश होता है । यहाँ षष्ठी तत्पुरुष समास है -आद्यानाम् उच्चारणम् । जो आद्यों अर्थात् शिव,पाणिनि, कात्यायन तथा पतंजली का उच्चारण है,उसे उपदेश कहते हैं, उनका कथन है कि प्रत्याहार सूत्र, धातुपाठ,गणपाठ,प्रत्यय,आगम और आदेश ये सब उपदेश हैं । इनमें अन्त्य हल् इत्संज्ञक होता है ।

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क्रमश: .......................

अगला सूत्र -२अदर्शनं लोप: १।१।६०।।

15 टिप्‍पणियां:

  1. प्रतिदिनं अष्टाध्यायीलघुसिद्धान्तयो:एकैकं सूत्रं लेखिष्याम्यत्र इति विचारयामि ।

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  4. धन्यवाद, समय समय पर दिशानिर्देश करते रहें

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  5. धन्यवाद, समय समय पर दिशानिर्देश करते रहें

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  6. आपने पाणिनीय सूत्रों को बहुत ही बेहतर तरीके से स्वयं अध्ययन के लिए और अध्यापन के लिए सरल विधि का प्रयोग सिखाया है… आपने बहुत बेहतर प्रस्तुति की है इसके लिए हृदय से आपको बहुत-बहुत आभार प्रकट करता हूं|

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  7. ।।अष्टाध्यायी मह्यम_ अतीव रोचते इति।।

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  8. ।।अष्टाध्यायी मह्यम_ अतीव रोचते इति।।

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